Movie Review: ‘31 अक्तूबर’

10/22/2016 9:38:27 AM

मुंबई:  निर्देशक शिवाजी लोटन पाटिल की फिल्म ‘31 अक्तूबर’ काफी विवाद के बाद इस शुक्रवार रिलीज हुई है। ये फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री इंदिया गांधी, हत्याकांड पर आधारित है, जिसमें सन 1984 के दंगों का चित्रण भी शामिल है। ये कहानी शुरू होती है दिल्ली के जनकपुरी इलाके में रहने वाले एक सिख परिवार की जिंदगी से। देविंदर सिंह (वीर दास) डेसू (उस समय दिल्ली विद्युत बोर्ड का नाम यही था) में काम करता है। उसकी पत्नी है तेजिंदर कौर (सोहा अली खान)। चार-पांच साल के दो बेटे हैं और एक बच्चा गोदियों का है। अन्य सामान्य दिनों की तरह 31 अक्तूबर, 1984 को भी देविंदर रोज की तरह अपने काम के लिए घर से निकलता है। इलाके में सभी धर्मों के लोगों से उसकी अच्छी दुआ-सलाम है। ऑफिस जाने से पहले वह गुरुद्वारे जाता है, जहां दोस्त पाल (दीपराज राणा) और तिलक (विनीत राणा) के परिवारों से उसकी मुलाकात होती है।

ऑफिस पहुंचने पर वह रोज की तरह अपने काम में जुट जाता है। सब सामान्य चल है। लेकिन कुछ देर बाद रेडियो पर चल रही एक खबर से वह चौंक जाता है। ऑफिस के अन्य लोग रेडियो पर कान लगाए हैं। पता चलता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों ने उनकी गोली मार कर हत्या कर दी है। सिख होने की वजह से ऑफिसकर्मी देविंदर को संदिग्ध निगाहों से देखने लगते हैं। कुछ अपना रोष भी प्रकट करते हैं। ऐसे में एक सहकर्मी के कहने पर देविंदर अपने घर चला जाता है, जहां उसे पता चलता है कि तेजिंदर बाजार गई है। उधर, तेजिंदर का घर लौटना मुश्किल हो जाता है क्योंकि, शहर में दंगे भड़क चुके हैं। वह किसी तरह से घर पहुंचती है और शहर का सारा हाल अपने पति को बताती है।

रात होने को है और बीपी के मरीज देविंदर की तबियत खराब हो रही है। घर में दवाई भी नहीं है। असहाय पड़े अपने पति को तेजिंदर किसी तरह संभालती है। ऐसे में पाल और तिलक अपने एक दोस्त योगेश (लखा लखविंदर सिंह) के साथ देविंदर को पूरे परिवार को बचाने के लिए आगे आते हैं। वह कार से किसी दूसरे इलाके से उन्हें लेने पहुंचते हैं, लेकिन रास्ते में उन्हें पुलिस और बलवाईयों से बचते-बचाते आना है जो कि एक जोखिम भरा काम है।