'दादा साहेब फाल्के' अवॉर्ड से सम्मानित हुईं आशा पारेख,PM मोदी ने दी बधाई

10/1/2022 8:57:08 AM

मुंबई: गुजरे जमाने की दमदार एक्ट्रेस आशा पारेख के लिए शुक्रवार का दिन बेहद खास रहा। 30 सिंतबर को आशा पारेख को भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान 'दादा साहेब फाल्के' पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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नई दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए 68वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड सेरेमनी में आशा पारेख को 'दादा साहेब फाल्के' पुरस्कार से नवाजा गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मु ने आशा पारेख को अवार्ड दिया। 

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अवार्ड मिलने पर वरिष्ठ एक्ट्रेस ने कहा कि वह अपने 80वें जन्मदिन से एक दिन पहले यह पुरस्कार पाकर धन्य महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा- 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करना बहुत बड़े सम्मान की बात है। मेरे 80वें जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले मुझे यह सम्मान मिला, मैं इसके लिए आभारी हूं। यह भारत सरकार की ओर से मुझे मिला सबसे अच्छा सम्मान है। मैं जूरी को इस सम्मान के लिए धन्यवाद देना चाहती हूं।'

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PM मोदी ने दी बधाई

आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिलने पर पीएम मोदी ने उनको बधाई दी है। पीएम ने ट्वीट कर कहा-आशा पारेख जी एक बेहतरीन फिल्मी हस्ती हैं। वह अपने लंबे करियर में बहुमुखी प्रतिभा के लिए जानी जाती हैं। मैं उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किए जाने पर बधाई देता हूं।

 

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दो दशक बाद किसी महिला को मिला ये सम्मान

2000 में सिंगर आशा भोसले को ये अवॉर्ड दिया गया था जिसके बाद आशा पारेख ये जीतने वाली पहली महिला हैं।वहीं आखिरी बार ये अवॉर्ड 2019 में हुआ था जिसमें साउथ सुपरस्टार रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। आशा भोसले के पहले दिवंगत गायिका लता मंगेशकर, दुर्गा खोटे, कानन देवी, रूबी मेयर्स, देविका रानी जैसी कलाकार भी इस सम्मानित अवॉर्ड को अपने नाम कर चुकी हैं। जानकारी के अनुसार, साल 1969 में एक्ट्रेस देविका रानी इस पुरस्कार को पाने वाली पहली महिला स्टार थीं।

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आशा पारेख ने अपने करियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में बेबी आशा पारेख नाम से की थी। दस साल की उम्र में मां फिल्म (1952) से उन्होंने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम करना शुरू किया था।  इसके बाद बिमल रॉय की फिल्म 'बाप बेटी' (1954) में उन्होंने काम किया, लेकिन इसकी असफलता ने उन्हें इस कदर निराश किया कि उन्होंने फिल्मों में काम न करने का फैसला ले लिया।आशा ने 16 साल की उम्र में फिल्मों में वापसी का फैसला लिया। बतौर एक्ट्रेस उनकी पहली फिल्म 'दिल दे के देखो' थी। स फिल्म में शम्मी कपूर उनके अपोजिट रोल में थे। फिल्म सुपरहिट साबित हुई और आशा रातों रात बॉलीवुड की सुपरस्टार बन गईं। 

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इसके बाद वह बैक टू बैक कई फिल्मों में काम करती गई और एक समय ऐसा आया कि वह इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा फीस लेने वाली हीरोइन बन चुकी थीं। इस फिल्म के बाद हुसैन ने आशा को 6 और फिल्मों 'जब प्यार किसी से होता है' (1961), 'फिर वही दिल लाया हूं' (1963), 'तीसरी मंजिल' (1966), 'बहारों के सपने' (1967), 'प्यार का मौसम' (1969) और 'कारवां' (1971) के लिए साइन कर लिया और सभी ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता बटोरी।साल 1999 में आई फिल्म 'सर आंखों पर' वे आखिरी बार नजर आई थीं। आशा भोसले को 11 बार लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड,1992 में उन्हें भारत सरकार की ओर से देश के प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया था।

 


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Content Writer

Smita Sharma


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