Movie Review: महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करती है तापसी-भूमि की ''सांड की आंख''

10/21/2019 12:05:26 PM

बॉलीवुड तड़का टीम. दिवाली पर 25 अक्टूबर को रिलीज हो रही 'सांड की आंख' को फिल्म समीक्षकों ने स्पेशल स्क्रीनिंग के बाद 3.5/5 रेटिंग दी है। यह फिल्म भी बॉयोपिक है। जिसमें एक्ट्रेस तापसी पन्नु और भूमि पेडनेकर लीड रोल में नजर आएंगी।  


 

कहानी: यह फिल्म भारत की सबसे बुजुर्ग शॉर्पशूटर प्रकाशी तोमर और चंद्रो तोमर के जीवन पर आधारित है और हमें एक प्रेरक संदेश देती है।   

 
समीक्षा: भाभी चंदरो (भूमि पेडनेकर) और प्रकाशी (तापसे पन्नू) एक ऐसे परिवार से ताल्लुख रखती हैं जो पुरुष प्रधान है और यहां सारे निर्णय घर के बड़े पुरुष ही करते हैं। ऐसे में यह दोनों भी इस तरह के माहौल की आदी हो चुकी हैं। इसी बीच इन दोनों को 60 की उम्र में महिलाओं के अस्तित्व को बचाए रखने का एक मौक मिलता है। इसके बाद शुरू होती है उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जौहरी गांव की दो 60 साल की उम्र पार कर चुकी महिलाओं की नई जिंदगी।

इस दौरान इन्हें पता चलता है कि दोनों बहुत अच्छी शूटर हैं। फिर इन्हें गांव में शूटिंग रेंज स्थापित करने वाले डॉक्टर यशपाल (विनीत सिंह) का सहयोग मिलता है। वे इनके लिए शूटिंग प्रशिक्षक बन जाते हैं। वे विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं और पदक जीतते हैं। जब वे अपने कौशल का सम्मान करने में व्यस्त होते हैं, तो उनके घर के पुरुष इन महिलाओं के जीवन में होने वाली नई घटनाओं से अनजान होते हैं। वे अपनी पोतियों को सूट का पालन करने के लिए भी प्रेरित करती हैं। हालांकि, कहानी में एक मोड़ तब आता है जब दोनों महिलाओं का यह लुका-छिपी से चल रहा खेल घर के पुरुषों के सामने आ जाता है। 

फिल्म की शुरुआत में डायरेक्टर तुषार हीरानंदानी ने दर्शकों को एक घर के माहौल से अवगत कराया है। उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की हैं, कैसे घर में  एक महिला की पहचान उसके दुपट्टे के रंग पर निर्भर करती है। घर की महिलाओं की पहचान उनके दुपट्टे के रंग पर निर्भर है। एक दृश्य में भूमि ने एक नवविवाहित तापसी को समझाया कि घर की महिलाएं एक विशिष्ट रंग का 'घूंघट' पहनती हैं, क्योंकि यह घर के पुरुषों में भ्रम से बचने में मदद करता है। 

भूमि और तापसी ने दादी के रूप में अपनी पोतियों को प्रेरित करने और उनकी मदद करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। दो अग्रणी महिलाओं ने फिल्म को सहजता से अपने कंधों पर ले लिया। उनकी अदम्य भावना तब भी चमक जाती है, जब वह कठिन हो जाता है। कई जगह एक्टिंग के मामले में तापसी ने भूमि को थोड़ा पीछा छोड़ दिया है। हालांकि, भूमि ने हरदम अपनी तरफ से बेहतर करने की कोशिश की है। 

फिल्म के गीतों में  'वोमेनिया' और 'उड़ता तीतर' कहानी के हिसाब से बहुत अच्छे हैं। संवाद उपदेशात्मक नहीं हैं, लेकिन ऐसे भी नहीं है कि उन्हें याद रखा जाए है। 

हालांकि, बुजुर्ग महिलाओं के किरदार में खराब प्रोस्थेटिक मेकअप दर्शक को विचलित कर सकता है। बुजुर्ग महिलाओं के बालों में चांदी की धारियां और पैची मेकअप आंखों को चुभता है, लेकिन इसके लिए भूमि और तापसी को पूरा  क्रेडिट देना चाहिए कि वे इस बाधा को दूर करती नजर आती हैं और आपको इससे परे देखने के लिए कहती हैं। हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक प्रेरणादायक कहानी है। एक सख्त संपादन ने इसे और अधिक मनोरंजक बना दिया है।  

Smita Sharma