Movie Review: नजर अंदाज नहीं कर पाएंगें कुमुद मिश्रा की ‘नजर अंदाज’, पढ़ें मूवी रिव्यू

10/10/2022 12:06:49 PM

फिल्म:नजर अंदाज 
निर्देशक : विक्रांत देशमुख
एक्टर: कुमुद मिश्रा , दिव्या दत्ता , अभिषेक बनर्जी और राजेश्वरी सचदेव आदि
रेटिंग : 2.5/5

 

जिंदगी खूबसूरत है, फर्क सिर्फ नजरिया है’ एक ऐसी फ़िल्म जो ज़िंदगी को देखने के नज़रिए को बदल सकती है , जिसका नाम तो नज़र अन्दाज़ है पर इस फ़िल्म को और इसके किरदारों को नज़र अंदर करना हमारी यो क्या किसी के बस की बात नहीं । कहानी , किरदार, अदाकारी सबमें अव्वल दर्ज़े को बेहतरीन फ़िल्म । लेकिन, फिल्म ‘नजर अंदाज’ का पोस्टर ऐसा है कि फिल्म की ये लॉग लाइन अलग ही नजरिये से समझ आती है। पोस्टर देखकर ये भी मुंबइया फिल्मी चक्की से निकली कोई चलताऊ कॉमेडी फिल्म नजर आती है। इसका ट्रेलर देखकर कुछ अलग सा महसूस हुआ। पता किया कि फिल्म का कोई एडवांस शो है क्या? और, शोर में तब्दील हो चुके बैकग्राउंड म्यूजिक और commercial फिल्मों के दौर में देखने को मिला एक सच्चा सिनेमा! एक अरसे बाद देखने को मिली एक ऐसी फिल्म जिसमें जिंदगी है, आशा है, उम्मीद है और है अभिनेता कुमुद मिश्रा का दिल को छू जाने वाला ऐसा अभिनय जिसे लोग हमेशा याद रखेंगे । 

 

कुमुद मिश्रा का अलग मिज़ाज 

कुमुद मिश्रा देखा जाए तो हिंदी सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता हैं जो हमेशा अपनी अदाकारी से हमारा दिल जीत लेते हैं चाहे किरदार छोटा हो या बड़ा वो सबके दिलों में अपनी चाप छोड़ते हैं । हाल ही में आयी उनकी सीरीज ‘डॉ. अरोड़ा गुप्त रोग विशेषज्ञ’ हो या फ़ोर अली अब्बास ज़फ़र की फ़िल्म जोगी में उनके द्वारा निभाया ज्ञ में विलेन का किरदार उनकी कलाकारी में हर बार कुछ नया ही नज़र आया । पर नजर अंदाज’ के बाद उनकी अदाकारी को अब नजर अंदाज करना मुश्किल hee नहीं नामुमकिन है जनाब । ये फिल्म एक ऐसा एहसास है जिसे सिर्फ देखकर ही महसूस किया जा सकता है। ऊपर ऊपर ये एक ऐसे दृष्टिहीन व्यक्ति का जीवन के साथ अपनापा है जिसके दिल में मोहब्बत की कसक बचपन से दबी हुई है। उसे संगीत से प्यार है । वायलिन बजाता है तो ‘ब्रह्मास्त्र’ के गाने ‘केसरिया तेरा’ की धुन सी बजती मालूम होती है, लेकिन ये धुन फिल्म में बार बार दोहराई जाती है तो ये भी समझ आता है कि संगीतकार विशाल मिश्रा और प्रीतम दोनों की इस सरगम का स्रोत हो सकता है, एक ही हो। और, ये सरगम ही कहानी के नायक सुधीर भाई के जीवन की उम्मीद है। और राजशेखर के लिखे गाने जो उनके और हमारे जीवन में एक नयी उमंग भर देते हैं ।
क्या सिर्फ़ नज़रिए का फ़र्क़ है? 

 

फिल्म ‘नजर अंदाज’ की कहानी शुरू होती है सुधीर भाई से जो सड़क के एक चोर पर खड़े हैं । एक  दूसरा दृष्टिहीन व्यक्ति उनसे सड़क पार करने की मदद माँगता और वह उसका हाथ थाम कर वाहनों के बीच ही सड़क पर उतर चलते हैं। सड़क के दूसरी छोर पर दोनों सकुशल पहुँच जाते हैं। चलते चलते सुधीर भाई कहते हैं, ‘मदद के इंतजार की आदत नहीं डालनी चाहिए। नहीं तो सड़क के उस तरफ ही खड़े रह जाओगे।’ यही उनके जीवन ka सार है । खांडवी उनका पसंदीदा भोजन है जिसका रिश्ता उनके अपने कस्बे मांडवी से जुड़ता है। सुधीर भाई की अपनी तमन्नाएं हैं जिन्हें वह कभी खुली छत वाली कार में खड़े होकर मुंबई से बाहर लंबी सैर पर जाकर पूरी करते हैं तो कभी घास पर नंगे पैर चलकर। लेकिन, उनको एक ही  तकलीफ़ पहुँचती है की कि वह चार कदम भी जीवन में अपने बूते भाग नहीं सके। जिसमें उनका हाथ थामते हैं अली और भवानी यानी अभिषेक बनर्जी और दिव्या दत्ता जिन्होंने अपने किरदारों को बल्हूबी दिलम में निभाया है ।

 

अली जो पेशे से एक चोर है लेकिन, सुधीर भाई उसको अपने घर में ठिकाना देते हैं। वह पूछता भी है कि एक अनजान पर भरोसा करके उन्हें डर नहीं लगता। सुधीर भाई जवाब में कहते हैं, ‘जिस इंसान पर कोई भरोसा नहीं करता, उस पर जिसने भरोसा किया, वह उसी को धोखा दे जाए, ऐसा होना तो नहीं चाहिए।’  तो वहीं भवानी हरियाणा की सतायी बिटिया है। उसे सुधीर भाई से मिलकर ही पता चला कि सच्चा प्रेम क्या होता है। वह काफ़ी चंट’ है। सुधीर भाई की विरासत पर उसकी नजर है। खाना वह सारा मोबाइल पर ऑर्डर करके मंगाती है। सुधीर भाई भवानी और अली पर आँख band करके bharosa करते हैं । बस इन तीनों का ये संगम ही फिल्म ‘नजर अंदाज’ में जान फूंकता हैं। फ़िल्म कभी हंसाती है यो कभी रुलाती है और, बात जब हांफ जाने की हद तक सुधीर भाई के बाहें पसार कर बेधड़क भागने तक पहुंचती है तो कहानी को दूसरा छोर मिल जाता है।

 

लक्ष्मण उतेकर और विक्रांत की कहानी को ऋषि विरमानी  ने बखूबी लिखा है । निर्देशक विक्रांत देशमुख की ये पहली फिल्म है और पहली ही फिल्म में उन्होंने ये साबित कर diya है कि उनकी दौड़ काफ़ी लम्बी होने वाली है इंडस्ट्री में । राकेश रंजन की सिनेमैटोग्राफी भी बेहद खूबसूरत है तो वहीं निहार रंजन की साउंड डिजाइन भी कमाल का है । फ़िल्म के gaane आपके दिल को छू लेते हैं । 

 

किसी भी फ़िल्म की पीछे एक पूरी टीम होती है विक्रांत ने फिल्म ‘नजर अंदाज’ में इस बात की पुष्टि की है ।अब तक पुरस्कारों के मामले में अभागे रहे कुमुद को इस फिल्म के लिए सीधे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ही मिलना चाहिए। दिव्या दत्ता हरियाणवी भवानी के किरदार से फिल्म की सुस्ती दूर रखती हैं तो अभिषेक बनर्जी का मुंबइया टपोरी अंदाज को बखूबी पर्दे पर दर्शाया है ।छोटे से रोल में राजेश्वरी का कहानी की सरगम पूरी करना भी अलग ही एहसास है। ऐसी फिल्में कम ही बनती हैं , लेकिन जब बनती हैं तो दिल
को सुकून पहुँचाती हैं । इसलिए इतना ही कहूँगी की ‘नज़र अन्दाज़ ‘ को नज़र अन्दाज़ करना बिल्कुल मना है ।


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News Editor

Deepender Thakur


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