'लोग अब तंग आ चुके हैं हिंदी फिल्मों से...भाषा विवाद पर नसीरुद्दीन शाह के बेबाक बोल

6/4/2022 1:43:42 PM

बॉलीवुड तड़का टीम. पिछले कुछ दिनों से इंडस्ट्री में भाषा विवाद को लेकर काफी हंगामा मचा हुआ है। खासकर साउथ बनाम बॉलीवुड इंडस्ट्री का विवाद, जिस पर कई नेता से लेकर अभिनेता तक अपनी राय दे चुके हैं। अब हाल ही में भाषा के इन विवादों पर मशहूर एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने अपनी जुबान खोली और साथ ही  उर्दू भाषा को लेकर भी अपनी बात रखी।

 

हाल ही में एक इंटरव्यू में नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि लोगों में यह बहुत बड़ी गलतफहमी है कि उर्दू सिर्फ मुसलमानों की जुबान है, यह फहमी दूर होनी चाहिए। इसे जबरदस्ती मुसलमानों की जुबान बनाया जा रहा है, जबकि इस पर लगाम लगाई जा सकता है। यह अजीब विडंबना है कि जो जुबान इसी मुल्क में पैदा हुई, पली बढ़ी उनसे विदेशी भाषा का दर्जा दिया जा रहा है।


 
उर्दू के भविष्य के सवाल पर नसीरुद्दीन ने कहा कि मैं दुआ करता हूं कि उर्दू सलामत रहे। क्योंकि आजकल के मां-बाप अपने बच्चों से अंग्रेजी में ही बात करते हैं। यह अफसोस की बात है, लेकिन यह भी सच है कि उर्दू कभी मर नहीं सकती। यह एक खूबसूरत जुबान है जो कभी मर नहीं सकती। कहने को उर्दू पाकिस्तान की राजभाषा है, लेकिन वहां 32 जुबानें बोली जाती हैं। हमारे जहां उर्दू साउथ से नॉर्थ और ईस्ट से वेस्ट तक फैली हुई है। इसे हजार मिटाने की कोशिश की जाए, लेकिन यह कभी नहीं मर सकती।

 

वहीं हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने के सवाल पर नसीरुद्दीन शाह बोले- 'पंडित नेहरू के जमाने में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने का बात हुई थी, लेकिन यह कोशिश नाकाम रही। मेरी समझ में नहीं आता कि अब क्यों दोबारा यह मसला उठाया जा रहा है। हिंदी कभी नेशनल जुबान बन ही नहीं सकती।'

 

 

भड़कते हुए एक्टर ने आगे कहा 'ये कोई डिफाइन करे कि हिंदूस्तानी खाना क्या होता है तो आप कौन से खाने क्या बयान देगें। पचास तरह के खाने होते हैं। इसी तरह हिंदूस्तानी जुबान कौन सी है जवाब है हिंदूस्तानी। देश में कई जुबाने हैं, सब अपने आप में महान हैं। किसी जुबान को रिप्लेस करना, एक जुबान किसी के हलक में ठूंसना कि तुम्हें यही बोलनी पड़ेगी, यह जरा डरावनी बात है। क्योंकि होम मिनिस्टर कुछ कहते हैं, प्रधानमंत्री कुछ कहते हैं। मेरे ख्याल से यह जुमला था जो खत्म हो जाएगा, क्योंकि इसको लागू करना नामुमकिन है। आप हजार रोक लगाते रहें, शराब बेचने वाले का धंधा बंद थोड़े हुआ होगा। हजार नोटबंदी करिए, काला धन खत्म थोड़े हुआ।'

 

साउथ वाले हिंदी पर हावी हो रहे हैं...इस सवाल पर एक्टर ने कहा, 'बहुत अच्छी बात है, साउथ हमेशा हमसे एक कदम आगे रहा। जब वीडियो टेप्स शुरू हुईं तो तेलुगू फिल्में हसमे ज्यादा कमाती थी। बहुत अच्छा नहीं कह सकते उन फिल्मों को क्योंकि वह कमर्शियल दायरे में ही आती हैं। कई तमिल फिल्मों में टेस्ट बहुत खराब होता है, लेकिन मलयालम और कन्नड़ की फिल्में हमेशा हमारे मुंबई सिनेमा से आगे रही हैं। मुंबई सिनेमा ने कई बार उन फिल्मों को दोबारा बनाया। मजे की बात ये है कि साउथ वालों ने उस हिंदी फिल्म को दोबारा बनाया। उनमें कहीं प तो ओरिजनेलिटी है वर्ना लोग हैं उन्हें देखने और हिंदी फिल्मों को क्यों नहीं देखते। मेरे ख्याल से लोग तंग आ गए हैं।'


 


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Content Writer

suman prajapati


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