Movie Review: नया इतिहास रचेंगे पीएम नरेंद्र मोदी, सिनेमाघरों में रिलीज हुई बायोपिक

5/23/2019 7:48:46 PM

मुंबई: फिल्म पीएम नरेंद्र मोदी सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। ये फिल्म देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक है। इस फिल्म में एक्टर विवेक ओबेरॉय लीड रोल में है। फिल्म पीएम नरेंद्र मोदी एक ऐसे शख्स की गुणगाथा है, जिसने बचपन मुफलिसी में गुजारा, जवानी में ही मां का आशीर्वाद लेकर संन्यासी बन गया, गुरु के कहने पर बस्ती में लौटा और अपनी ही पार्टी की अंदरूनी सियासत से जूझकर जननायक बना। बाल नरेंद्र स्टेशन पर चीन सीमा पर जाते फौजियों को जब मुफ्त में चाय पिलाता है, तो ये फिल्म का पहला आधार होता है। फिर वह अपने गुरु को चाकू देते समय इसका दस्ता आगे करता है, तो यह जनहित की दूसरी धुरी बनती है। 

 


गुजरात के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में नहरों की खुदाई का जिम्मा लेकर वह बताता है, वोट के पीछे मत भागो, काम करो, वोट खुद चलकर आएगा। वह गुजरात का पहला किंगमेकर है, जिसकी शोहरत से गांधीनगर से लेकर दिल्ली तक में हलचल है। ओमंग कुमार ने इसके पहले मैरी कॉम और सरबजीत जैसी बायोपिक्स बनाकर अपना एक फैनबेस तैयार किया है। पीएम नरेंद्र मोदी इसका विस्तार है। वह सिनेमा बनाते हैं, डॉक्यूमेंट्री नहीं। 

 


डायरेक्शन


दर्शन कुमार को फिर उन्होंने फिल्म में ऐसे उत्प्रेरक के तौर पर इस्तेमाल किया है जो मोदी को खत्म करने की साजिश रचने वालों का मोहरा है। अपने चैनल का वह जमकर दुरुपयोग भी करता है। ओमंग ने इस फिल्म को रिश्तों की डोर से बांधा है, ये रिश्ते मोदी-शाह के रिश्तों को जय वीरू और सचिन सहवाग जैसा रिश्ता बताते हैं। ये भी बताते हैं कि बच्चों को विवेकानंद का साहित्य पढ़ने की सीख देने वाले माता-पिता को तब क्या करना चाहिए, जब उनका अपना बच्चा विवेकानंद जैसा बनने की ठान ले।

 


मां इस फिल्म की सबसे मजबूत धुरी है। वह हर उस घड़ी में फिल्म को नया मोड़ देती है जब नरेंद्र मोदी के मन में विचारों का तूफान उठता है। विवेक ओबेरॉय को नरेंद्र मोदी के तौर पर स्वीकार करने में थोड़ा वक्त लगता है। लेकिन, ये बस उतनी ही देर तक है जितनी देर फिल्म गांधी में बेन किंगस्ले को मोहनदास के तौर पर स्वीकारने में लगता है। बस यहां कस्तूरबा नहीं हैं। इसके बाद विवेक ओबेरॉय ने नरेंद्र मोदी के तिलिस्म को परदे पर जीवंत कर दिया है। खासतौर से लाइव इंटरव्यू में मोदी बने विवेक ओबेरॉय की अदाकारी तालियों का हकदार बनती है। मां के रूप में जरीना वहाब, शाह के रूप में मनोज जोशी और टीवी पत्रकार के रूप में दर्शन कुमार ने दमदार काम किया है और फिल्म को मजबूत बनाया है।

 

फिल्म तकनीकी तौर पर भी बहुत उम्दा है। सुनीता राडिया ने एक सियासी बायोपिक के लिए कैमरा घुमाते समय कहीं भी कुछ भी छूटने नहीं दिया है। फिल्म की पटकथा और संवाद में हर्ष लिम्बाचिया और अनिरुद्ध चावला के साथ खुद विवेक ओबेरॉय ने भी योगदान किया है। फिल्म में गाने ज्यादा नहीं हैं, लेकिन जहां भी हैं, वह फिल्म को क्लाइमेक्स की तरफ ले जाने में मदद करते हैं।
 

Konika