Movie Review: समाज का असली चेहरा दिखाती है आयुष्मान खुराना की 'आर्टिकल 15'

6/27/2019 5:33:58 PM

मुंबई: बॉलीवुड एक्टर आयुष्मान खुराना की फिल्म 'आर्टिकल 15' रिलीज हो गई है।आयुष्मान खुराना की ये फिल्म भारतीय संविधान के उस प्रावधान को मूल में रखती है, जिसमें लिखा गया है कि किसी भी नागरिक के साथ जाति, नस्ल या लिंग से जुड़ा भेदभाव नहीं किया जाएगा। ये फिल्म एक निर्णायक फैसले पर खत्म होती है और कोई बहुत बड़ा उपदेश नहीं देती बस हमारी छोटी गलतियों को ठीक कर आगे निकलने की राह दिखाती है।

 

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कहानी


आईपीएस अधिकारी अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) को मध्यप्रदेश के लालगांव पुलिस स्टेशन का चार्ज दिया जाता है। यूरोप से हायर स्टडीज करके लौटा अयान इस इलाके में आकर बहुत उत्सुक है, मगर अपनी प्रेमिका अदिति (ईशा तलवार) से मेसेजेस पर बात करते हुए वह बता देता है कि उस इलाके में एक अलग ही दुनिया बसती है, जो शहरी जीवन से मेल नहीं खाती। अभी वह वहां के माहौल को सही तरह से समझ भी नहीं पाया था कि कि उसे खबर मिलती है कि वहां की फैक्टरी में काम करने वाली तीन दलित लड़कियां गायब हैं, मगर उनकी एफआरआई दर्ज नहीं की गई है। उस पुलिस स्टेशन में काम करने वाले मनोज पाहवा और कुमुद मिश्रा उसे बताते हैं कि इन लोगों के यहां ऐसा ही होता है। लड़कियां घर से भाग जाती हैं, फिर वापिस आ जाती हैं और कई बार इनके माता-पिता ऑनर किलिंग के तहत इन्हें मार कर लटका देते हैं। दलित लड़की गौरा (सयानी गुप्ता) और गांव वालों की हलचल और बातों से अयान को अंदाजा हो जाता है कि सच्चाई कुछ और है। वह जब उसकी तह में जाने की कोशिश करता है, तो उसे जातिवाद के नाम पर फैलाई गई एक ऐसी दलदल नजर आती है, जिसमें राज्य के मंत्री से लेकर थाने का संतरी तक शामिल है। 

 

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अयान पर गैंग रेप के इस दिल दहला देने वाले केस को ऑनर किलिंग का जामा पहन कर केस खोज करने के लिए दबाव डाला जाता है, मगर अयान इस सामाजिक विषमता के क्रूर और गंदे चेहरे को बेनकाब करने के लिए कटिबद्ध है। निर्देशक अनुभव सिन्हा के निर्देशन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने जातिवाद के इस घिनौने रूप को थ्रिलर अंदाज में पेश किया और जब कहानी की परतें खुलने लगती है, तो दिल दहल जाने के साथ आप बुरी तरह चौंक जाते हैं कि इन तथाकथित सभ्य, परिवारप्रेमी और सफेदपोश किरदारों का असली रूप क्या है? फिल्म का वह दृश्य झकझोर देने वाला है, जब अयान को पता चलता है कि मात्र तीन रुपये से ज्यादा दिहाड़ी मांगने पर लड़कियों को रेप कर मार दिया गया। फिल्म में द्रवित कर देने वाले ऐसी कई दृश्य हैं। 

 

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डायरेक्शन


निर्देशक ने फिल्म को हर तरह से रियलिस्टिक रखा है। इवान मुलिगन की सिनेमटोग्राफी में फिल्माए गए कुछ सीन आपको विचलित कर देते हैं। मुंह अंधेरे फांसी देकर पेड़ पर लटकाई गई लड़कियों वाला सीन हो या फिर मजदूर द्वारा नाले के अंदर जाकर सफाई करनेवाला सीन। निर्देशन और सिनेमटोग्राफी की तरह दिल में घाव करनेवाले डायलॉग भी कम चुटीले नहीं हैं। दलित नेता जीशान अयूब का संवाद 'ये उस किताब को नहीं चलने देते, जिसकी शपथ लेते हैं। इस पर आयुष्मान कहते हैं 'यही तो लड़ाई है उस किताब की चलानी पड़ेगी उसी से चलेगा ये देश।' 

 

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एक्टिंग 

कुमुद शर्मा, मनोज पाहवा, सयानी गुप्ता, मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब और एम. नासिर जैसे कलाकारों की सपोर्टिंग कास्ट ने बेहतरीन काम किया है। वहीं लीड में आयुषमान ने अपना काम बहुत सधे हुए तरीके से किया है। खुराना, बतौर पुलिस, बॉलीवुड के उन पुलिसवालों से अलग हैं जो डॉयलॉग बाज़ी करते नज़र आते हैं। वो एक 'दबंग' पुलिस वाले नहीं है जो विलेन को हवा में उड़ा दे, वो सही की समझ रखता है और चीज़ों को ठीक करना चाहता है। आयुष्मान ने जिस तरह से इस किरदार को निभाया है वो काबिल ए तारीफ है।


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Konika


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