Review:  ''मरजावां'' पर मरने जैसा कुछ नहीं है

11/15/2019 12:48:51 PM

बॉलीवुड़ तड़का टीम. इस शुक्रवार सिद्धार्थ मल्होत्रा, तारा सुतारिया और रकुलप्रीत सिंह स्टारर 'मरजावां' रिलीज हो चुकी है। इसकी कहानी एक ऐसे शख्स की है जो एक टैंकर माफिया का राइट हैंड है और इस किरदार में   सिद्धार्थ मल्होत्रा यानी रघु दिखाई देंगे। लेकिन रघु की लाइफ में ट्विस्ट तब आता है जब उसकी मुलाकात जोया यानी तारा सुतारिया से होती है। लेकिन इनकी प्रेम कहानी अपने मुकाम तक पहुंचने में कामयाब नहीं होती। 

'मरजावां' रिव्यूः फिल्म की शुरुआत लीड एक्टर रघु के एक्शन सीन से होती है। वह च्यूइंग गम की तरह माचिस की एक तीली को मुंह में दवाए कुछ गुंड़ों की पिटाई कर रहा होता है। वह अपने साथ फर्स्ट एड किट और त्रिशूल के साथ एक एम्बुलेंस की भी व्यवस्था रखता है। गुंड़ों की पिटाई के बाद वह डायलॉग मारता है कि  “ मैं टोडूंगा  भी और तोड़ कर जोड़ूगा भी ” । इसके बाद वह एक और डायलॉग मारता है कि “ मैं मारुंगा मर जाऊंगा, दोबारा जनम लेने से डर जाऊंगा” । यह सब बहुत बड़ा ड्रामा लगता है। एक्शन अच्छा है, लेकिन यह लड़ाई क्यों हो रही है यह भी थोड़ा जस्टिफाइ कर दिया होता तो अच्छा रहता। 

 

फिल्म की स्टोरी 80 के दशक के आसपास की है। इसमें यूपी के बरेली को दर्शाया गया है। कहानी में कुछ खास नया नहीं है। ढाई घंटे की प्रेम कथा में थकावट होने लगती है और यह पूरी तरह से रूढि़यों से भरे नाटक और एक्शन का बदला है। शुक्र है, 'मारजवा' के पास कुछ अच्छे कलाकार हैं, जो अपनी एक्टिंग से फिल्म की कमजोरियों को थोड़ा कम करने का प्रयास करते हैं। 

फिल्म में खलनायक की भूमिका विष्णु, रितेश देशमुख ने निभाई है। एक बौना के रूप में जो हाइट कम होने से थोड़ा पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है। हालांकि, खलनायक रितेश बिल्कुल भयानक नहीं दिखता है, लेकिन उसका प्रदर्शन कुछ भय पैदा करता है। लेकिन उसके डॉयलॉग कई बार कॉमेडी की तरह लगते हैं।

इस तरह 'मरजावा' एक हल्की-फुल्की फिल्म है। जो टाइमपास के लिए देखी जा सकती है। 

Smita Sharma