अमरीश पुरी कैसे बन गए मोगैंबो, जानिए कुछ ऐसा था सफर

1/12/2018 12:32:38 PM

मुंबई: बॉलीवुड में अमरीश पुरी (Amrish Puri) को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी कड़क आवाज रौबदार भाव भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर खलनायकी को एक नई पहचान दी। 250 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके अमरीश पुरी की आज पुण्यतिथि हैं। मगर पुरी अभिनेता चमन पुरी और मदन पुरी के भाई थे। केएल सहगल उनकी बुआ के बेटे थे, जिनकी मदद से 1938 की ‘स्ट्रीट सिंगर’ में चमन पुरी को फिल्मों में काम मिला। फिर मदन पुरी 1946 की ‘अहिंसा’ से और अमरीश पुरी 1971 की मराठी फिल्म शांतता कोर्ट चालू आहे से फिल्मों में आए।

उनकी विवादास्पद फिल्म थी द इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम। इसका निर्देशन किया था स्टीवन स्पीलबर्ग ने और इसकी कहानी लिखी थी छह ऑस्कर जीतने वाली फिल्म ‘स्टार वार्स’ से मशहूर जॉर्ज लुकास ने। स्पीलबर्ग ने पुरी को इस फिल्म का ऑडिशन देने के लिए अमेरिका बुलाया, तो पुरी ने कहा कि जिसे जरूरत हो वह आए और यहीं ऑडिशन ले। मजबूरी में स्पीलबर्ग को भारत आना पड़ा। पुरी ने फिल्म की पटकथा पढ़ी और कहा कि यह तो औसत दर्जे की फॉर्मूला फिल्म जैसी है और वह इसमें काम नहीं करना चाहते। तब स्पीलबर्ग ने ‘गांधी’ बनाने वाले एटनबरो की सिफारिश करवाई क्योंकि अमरीश ने इसमें उनके साथ काम किया था। आखिर अमरीश नरबलि देने वाले तांत्रिक मोला राम की भूमिका करने के लिए तैयार हो गए। 

फिल्म में भारत की नकारात्मक छवि के कई दृश्य थे। बाल उत्पीड़न और नरबलि ही नहीं इसमें भारतीयों के खानपान को भी विकृत तरीके से प्रस्तुत किया गया था। फिल्म के एक मशहूर दावत-दृश्य में एक औरत समेत तीन विदेशी मेहमानों को डाइनिंग टेबल पर सबसे पहले एक अजगर, फिर मकड़ी, कीड़े-मकोड़े, आंखों का सूप और बंदर का मगज (मंकी ब्रेन) तक परोसा जाता है। दूसरी ओर तांत्रिक मोला राम की भूमिका में अमरीश ने नरबलि के दृश्यों में इतना प्रभावशाली अभिनय किया था कि विदेशी दर्शक उन्हें देखते हुए भय से भर जाते थे।

गाय के सींग में उनका गेटअप भी चर्चा का विषय बना। इस फिल्म की शूटिंग भारत में संभव नहीं थी लिहाजा श्रीलंका में की गई। जब फिल्म बन कर सेंसर बोर्ड में आई तो बोर्ड ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। फिल्म अन्य देशों में रिलीज हुई, मगर इसकी जमकर आलोचना हुई। सत्यजीत राय तक ने इस फिल्म के प्रति नापसंदगी जताई। हालांकि शूटिंग के दौरान स्पीलबर्ग एक लतीफे के जरिये इस पर टिप्पणी करते थे कि भारतीय बहुत चतुर हैं। पश्चिम के लोग भारत को जिस नजर से देखते हैं, उनकी मेहमाननवाजी करते समय वे उन्हें उसी तरह का खाना परोसते हैं।

बहरहाल, अमरीश पुरी और रोशन सेठ को उनके करीबियों तक से यह सुनना पड़ा कि इतने समझदार होते हुए भी उन्होंने ये भूमिकाएं क्यों स्वीकार कीं। पुरी ने इस फिल्म के लिए अपना सिर मुंडवाया था और उसके बाद वे हमेशा ही अपना सिर मुंडवाते रहे क्योंकि उनका सिर फिल्मकारों के प्रयोगों के लिए आसान बन गया था। हालांकि इसका एक फायदा भी हुआ।

उन्हें 1987 की मिस्टर इंडिया में मोगैंबो की भूमिका मिली जिसने उनके करियर को एक ऊंचाई दे दी थी। हालांकि इसके लिए पहले अनुपम खेर को लिया जाने वाला था। मगर अनिल कपूर ने जब ‘इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम’ देखी तो अमरीश पुरी के मोला राम किरदार से प्रभावित हो गए। उन्होंने बोनी से सिफारिश की कि मोगैंबो की भूमिका में अमरीश पुरी फिट रहेंगे। इस तरह अमरीश पुरी को मोगैंबो की भूमिका मिली, जिसमें मोला राम के गेटअप का अपना हाथ था।

Konika