Birthday Special: चुरा लिया है तुमने जो दिल को

9/8/2017 11:21:38 AM

मुंबई:  अपनी आवाज की कशिश के लिए विख्यात आशा भोंसले अनेक नये प्रयोगों के साथ पिछले छह दशकों में सिने जगत को 12 हजार से अधिक दिलकश और मदहोश करने वाले गीत दे चुकी हैं । हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और अन्य कई भाषाओं के गीत गाये हैं।   आठ सितंबर 1933 महाराष्ट्र के सांगली गांव में जन्मी आशा भोंसले के पिता पंडित दीनानाथ मंगेश्कर मराठी रंगमंच से जुड़े हुए थे । नौ वर्ष की छोटी उम्र में ही आशा के सिर से पिता का साया उठ गया और परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी को उठाते हुए आशा और उनकी बहन लता मंगेश्कर ने फिल्मों में अभिनय के साथ साथ गाना भी शुरू कर दिया।  आशा भोंसले ने अपना पहला गीत वर्ष 1948 में ...सावन आया ...फिल्म चुनरिया में गाया।

16 वर्ष की उम्र में अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध जाकर आशा ने अपनी उम्र से काफी बड़े गणपत राव भोंसले से शादी कर ली। उनकी वह शादी ज्यादा सफल नहीं रही और अंतत: उन्हें मुंबई से वापस अपने घर पुणे आना पड़ा। उस समय तक गीतादत्त,शमशाद बेगम और लता मंगेश्कर फिल्मों में बतौर पाश्र्व गायिका अपनी धाक जमा चुकी थी।  वर्ष 1957 में संगीतकार ओ पी नैय्यीर के संगीत निर्देशन में बनी निर्माता-निर्देशक बी आर चोपड़ा की फिल्म ...नया दौर... आशा भोंसले के सिने करियर का अहम पड़ाव लेकर आई। वर्ष 1966 में तीसरी मंजिल में आशा भोंसले ने आर डी बर्मन के संगीत में ...आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा ...गाने को अपनी आवाज दी जिससे उन्हें काफी प्रसिद्वि मिली। 


60 और 70 के दशक में आशा भोंसले हिन्दी फिल्मों की मशहूर नृतक अभिनेत्री ...हेलन... की आवाज समझी जाती थी। आशा भोंसले ने हेलन के लिये तीसरी मंजिल में ..ओ हसीना जुल्फों वाली.. कारवां में .. पिया तू अब तो आजा ..मेरे जीवन साथी में आओ ना गले लगा लो ना और डॉन में ..ये मेरा दिल प्यार का दीवाना.. गीत गाया।  शास्त्रीय संगीत से लेकर पाश्चात्य धुनों पर गाने में महारत हासिल करने वाली आशा भोंसले ने वर्ष 1981 में प्रदर्शित फिल्म उमराव जान से अपने गाने के अंदाज में परिवर्तन किया। फिल्म उमराव जान से आशा भोंसले एक कैबरे सिंगर और पॉप सिंगर की छवि से बाहर निकली और लोगो को यह अहसास हुआ कि वह हर तरह के गीत गाने में सक्षम है।  उमराव जान के लिये आशा ने ..दिल चीज क्या है.. और ..इन आंखो की मस्ती के.. जैसी गजलों को गया जिसे सुनकर उन्हें खुद भी आश्चर्य हुआ कि वह इस तरह के गीत भी गा सकती है। इस फिल्म के लिए उन्हें अपने करियर का पहला नेशनल अवार्ड भी मिला ।  वर्ष 1994 में अपने पति आर डी बर्मन की मौत से आशा भोंसले को गहरा सदमा लगा और उन्होंने गायिकी से मुंह मोड़ लिया लेकिन उनकी जादुई आवाज आखिर दुनिया से कब तक मुंह मोड़े रहती। उनकी आवाज की आवश्यकता हर संगीतकार को थी। कुछ महीनों की खामोशी के बाद इसकी पहल संगीतकार ए आर रहमान ने की।