सुचित्रा सेन थी पहली एक्ट्रैस जिन्हें विदेश में मिला था अवॉर्ड

4/6/2018 10:11:54 AM

मुंबई: बॉलीवुड एक्ट्रैस सुचित्रा सेन एक एेसी अभिनेत्री थी जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान बनाई। सुचित्रा सेन का असली नाम रोमा दासगुप्ता है उनका जन्म आज ही के दिन 1931 को पवना में हुआ। सुचित्रा के पिता करूणोमय दासगुप्ता स्कूल में हेडमास्टर थे। 5 भाई बहनों में सुचित्रा तीसरी संतान थीं। सुचित्रा सेन ने अपनी स्कूली पढ़ाई पवना से ही की। इसके बाद वह इंग्लैंड चली गईं और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से अपना ग्रेजुएशन किया। 1947 में उनकी शादी बंगाल के जाने माने बिजनेसमैन आदिनाथ सेन के बेटे दीबानाथ सेन से हुई। 1952 में सुचित्रा सेन ने एक्ट्रैस बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और बांग्ला फिल्म 'शेष कोथा' में काम किया हालांकि फिल्म रिलीज नहीं हो सकी। 1952 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'सारे चतुर' उनकी पहली फिल्म थी इसमें उनके साथ उत्तम कुमार थे। 

 

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1963 में सुचित्रा की एक और सुपरहिट फिल्म 'सात पाके बांधा' रिलीज हुई। उन्हें इस फिल्म के लिए मास्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म एक्ट्रैस के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में पहला मौका था जब किसी भारतीय एक्ट्रैस को विदेश में पुरस्कार मिला था। बाद में इसी कहानी पर 1974 में हिंदी में 'कोरा कागज' बनीं जिसमें सुचित्रा सेन का किरदार जया बच्चन ने निभाया।

 

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हिंदी सिनेमा में सुचित्रा सेन की धमाकेदार एंट्री हुई बिमल रॉय की 'देवदास' से। साल 1955 में रिलीज हुई 'देवदास' में सुचित्रा सेन ने पारो की भूमिका में जान भर दी। वहीं सुचित्रा सेन 1975 में रिलीज हुई फिल्म 'आंधी' से अपनी एक अलग छाप छोड़ी। लजार निर्देशित इस फिल्म में उन्हें अभिनेता संजीव कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला। यह फिल्म कुछ दिनों के लिए बैन भी कर दी गई थी। बाद में जब यह रिलीज हुई तो अच्छी सफलता मिली। फिल्म के गाने आज भी सदाबहार गीतों की श्रेणी में आते हैं। 

 

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सुचित्रा सेन बड़े से बड़े फिल्मकारों के साथ काम करने का प्रस्ताव ठुकराती रहीं। सुचित्रा ने राज कपूर की एक फिल्म में काम करने का प्रस्ताव इसलिए ठुकराया क्योंकि राज कपूर द्वारा झुककर फूल देने का तरीका उन्हें पसंद नहीं आया था। यही नहीं सुचित्रा ने सत्यजीत राय की फिल्म को भी मना कर दिया था। सत्यजीत राय ने फिल्म 'देवी चौधरानी' बनाने का विचार ही छोड़ दिया। 2005 में उन्होंने दादासाहेब फाल्के पुरस्कार का प्रस्ताव महज इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि इसके लिए उन्हें कोलकाता छोड़कर दिल्ली जाना पड़ता।

 

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सुचित्रा आखिरी बार साल 1978 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'प्रणोय पाश' में दिखीं। इस फिल्म के बाद उन्होंने इंडस्ट्री से संन्यास ले लिया और रामकृष्ण मिशन की सदस्य बन गईं और सामाजिक कार्य करने लगीं। 1972 में सुचित्रा को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वालीं सुचित्रा 17 जनवरी 2014 को इस दुनिया को अलविदा कह गई।
 


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